बुक्सा जनजाति की गुड्डी बहाने की परम्परा

 

बुक्सा जनजाति समाज में प्राचीन काल में इस त्यौहार को बहुत ही हर्षोल्लास और धूमधाम के साथ मनाते थे। इस दिन का कई महीनों से इंतजार रहता था जिसमें गांव के युवा,युवती प्रतिभाग करते थे लड़कियां नदी में बहाने के लिए एक सप्ताह पहले से ही कपडे की छोटी छोटी गुड़िया(गुडडी) बनाने की तैयारी करती थी और घर में भोजन के रूप में लुचई,चीला,पराठे, गुड, मिठाई,चीनी और चटनी के साथ गंगा दशहरा वाले दिन पूजा कर ग्रहण करते थे।इन सारी सामग्री को नदी के पास मे पूजते है।जो मां गंगा की पूजा मानी जाती है। इसमे समस्त गांव की युवती किसी नदी में जाकर गुडडियो को बहाती थी और लड़के उन गुडडियो को डंडे से पीटते(मारते) थे फिर नदी में स्नान करते थे। इस त्यौहार में बहुत ही आनंद आता था और साथ ही आपस मे कुछ शरारते भी करते थे जैसे युवतियों से डलईया,लुचई,चीला पराठे आदि को छीन कर खाना।उस समय यह पल बहुत ही सुंदर और यादगार थे। आज भी उन सुंदर क्षणों के बारे में सोचते हैं तो मन पुलकित होकर भावुक हो जाता है जो आज की इस डिजिटल मोबाइल की दुनिया में जाने कहाँ खो गए वो दिन। इस पर्व में बच्चे बहुत ही आनंद लेते थे। आज भी बुक्सा समाज के लोग इस पर्व को कहीं कहीं मनाते हुए दिख जायेंगे।

इस पर्व का महत्व- 

1.इस दिन गंगा स्नान या नदी में स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं।2

.इस दिन दान करना काफी लाभकारी होता है।

सूचनार्थ-दानसिंह अहीर, खटोला नं.1 गदरपुर

Buksa Parivar

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