बुक्सा जनजाति का संक्षिप्त परिचय
श्री वीरेंद्र सिंह पुत्र श्री भीम सिंह ग्राम व पोस्ट ऑफिस पदमपुर मोटाढाक तहसील कोटद्वार जिला पौड़ी गढ़वाल के अनुसार
उत्तराखंड प्रदेश में निवास करने वाली बुक्सा/बोक्सा आदिम जनजाति जो वर्तमान में गढ़वाल मंडल के देहरादून हरिद्वार पौड़ी और कुमाऊं मंडल के नैनीताल उधम सिंह नगर जनपदों में बाबर व तराई की प्राकृतिक पर्यासावो में निवास करती है वैसे तो बुक्सा समाज हिमाचल गढ़वाल कुमाऊं तथा नेपाल में भी निवासरत है जिसको राजस्थान के राजपूताना तथा मध्य भारत से तुर्को तथा मुगलों द्वारा उत्तर की ओर खदेड़ा गया हमारी भाषा संस्कृति परंपरा रीति रिवाज आस्था पहनावा सभी आज भी पूर्ण रूप से आदिम राजस्थान से मिलते हैं मैं आपको सर्वप्रथम बुक्सा नामोत्पत्ति के विषय में अवगत कराना चाहता हूं बुक्सा का अर्थ तंत्र मंत्रों के सिद्ध पुरुष से है जिसे जम्मू बुक्सा कहा जाता है यह शब्द बुक्साड़ी विद्या के सिद्ध पुरुष के लिए प्रयोग किया जाता है गढ़वाल के राजा महाराजा अजयपाल भी बुक्साड़ी विद्या के सिद्ध पुरुष थे। इस विद्या का प्रयोग प्राचीन काल के राजा अपने घरों की रक्षा तथा विजय हेतु करते थे उन्नाव के राजा रामराव बक्श भी अपने आपको बक्श कहते थे नेपाल पर भी बुक्साड़ी तंत्र विद्या के सिद्ध पुरुष को बक्शाड़ी कहा जाता है
इतिहास इलियट डाउनशन के अनुसार यह जाति महाराजा जगतदेव सिंह पंवार के साथ धारानगरी मालवा से शारदा नदी के किनारे आए थे कोटद्वार में गढ़वाल के 52 गढ़ में से प्रमुख गढ़ मावाकोट गढ़ कोटद्वार से 5 किलोमीटर पश्चिम में है जहां राजा जगत देव का ऐतिहासिक मंदिर एवं गढ़ अवशेष है मेरे पास इस बात का पर्याप्त साक्ष्य है जो राजा जगदेव पंवार को उत्तराखंड के पंवार वंश का संस्थापक घोषित करते हैं राजस्थान की भांति ही समाज में प्रत्येक परिवार की पृथक पृथक घर सत्तियां होती हैं, सती को माता के रूप में पूजा जाता है क्योंकि यह वह स्त्री थी जो अपने पति के रणभूमि में मारे जाने के पश्चात सती हो जाती थी इसलिए इन्हें प्रत्येक परिवार में पूजा जाता है प्रत्येक घर में घर सती का स्थान गुप्त होता है यदि घर सती नाराज हो जाए तो अनिष्ट की संभावना रहती है इस समाज के अधिकार हिमालय की उच्च श्रेणी शिवालिक की तलहटी को अपना आवास बनाया उसका पर्याप्त कारण यह है कि जब भी दिल्ली में मुगलों तर्कों के आक्रमण होते थे तो यह लोग पर्वतों में छुप जाते थे यही इनके बहुत से गढ़ भी पूरावशेष रूप में आज भी विद्यमान है क्योंकि जब इन गढ़ो को लूटा गया तो महा पलायन में कुछ लोग ऊपर पहाड़ों पर चले गए तथा कुछ पहाड़ों पर शांति काल में वापस लौट आए उनके साक्ष्य हेतु अंदर पहाड़ों पर कालागढ़ के ऊपर ढिकाला के पास राम गंगा के किनारे बुक्साड़ गांव के अवशेष विद्यमान है कुछ डैम में डूब चुके हैं
इस समाज में शोध करने की आवश्यकता है जो कि एक महा जाती थी भारत में आताताइयों के हमले के कारण मध्य भारत राजपूताना से अपने धर्म की रक्षा तथा अपनी बहू बेटियों की इज्जत बचाने के कारण यहां आकर बस गए थे।
कहानी के लेखक
दर्शन लाल जी