बुक्सा और बोक्सा मेहरा राजपूतो का D.N.A. टैस्ट

 


बुक्सा और बोक्सा मेहरा राजपूतो का D.N.A. टैस्ट 

भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार के माध्यम से उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के बुक्सा एवं गढ़वाल मंडल के बोक्सा मेहरा राजपूतों का डीएनए टेस्ट कराया गया तो यह परिणाम सामने आया कि दोनों जातियों का एक ही डी.एन.ए हैं और बुक्सा तथा बोक्सा राजपूत समाज का शैक्षिक आर्थिक एवं सामाजिक स्तर तथा इनका जीवन यापन खानपान रीति रिवाज वेशभूषा संस्कृति देवी देवता समान है क्योंकि यह दोनों समाज एक ही है और इन्हें बोक्सा मेहरा राजपूत एवं बुक्सा दो नाम दिए गए गढ़वाल मंडल की बोक्सा मेहरा राजपूत जाति तथा कुमाऊं मंडल की बुक्सा जाति के साथ 1967 में संवैधानिक रूप से शामिल कर सरकारी दस्तावेजों मे बुक्सा (Buksa)  जनजाति नाम दिया गया।

बुक्सा जनजाति के लोग उत्तराखंड के 5 जिलों देहरादून हरिद्वार पौड़ी गढ़वाल नैनीताल उधम सिंह नगर एवं उत्तर प्रदेश की 2 जिलों बिजनौर सहारनपुर तथा हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर में निवास करती है हालांकि हिमाचल प्रदेश में बुक्सा शब्द प्रचलित नहीं है। वो खुद को मेहरा राजपूत बताते हैं और उन्हें सरकार ने ओबीसी कैटेगरी में शामिल किया है। ताकि उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में बुक्सा समाज को अनुसूचित जनजाति कैटेगरी में शामिल किया है।

बुक्सा जनजाति के लोग बहुत ही ईमानदार सच्चे सीधे और भोले होते हैं इनकी मुख्य कुलदेवी मां बालसुंदरी है और पंवार /परमार वंशीय श्रद्धेय राजा जगतदेव सिंह इनके राजा थे। बुक्सा समाज खुद को परमार/पंवार वंश का बताता है।

इनकी महिलाओं में आज भी पर्दा प्रथा प्रचलित है जो राजपूत महिलाओं की प्राचीन काल से ही पहचान रही हैं। वर्तमान समय मे भी आज भी बुक्सा समाज की महिलाएं सोलह सिंगार करती है। पति को देवता के रूप में मानती हैं और बड़े बूढ़े बुजुर्गों का सम्मान करती हैं ससुर जेठ के सामने आज भी पर्दा करती हैं। और पूरा दिन कुछ ना कुछ काम करती रहती है बुक्सा महिलाओ मे प्रतिभा व हुनर की कोई कमी नहीं है। आज भी अपनी खेती किसानी घर गृहस्थी का दैनिक कार्य निपटा कर ढल्लैया बिनना,सिलाई करना,झालर बनाना, गमले बनाना, त्योहारों में घर की लिपाई करके दीवार पर व आंगन में सुंदर सुंदर चित्रकारी बनाना और किसी शुभ कार्य के लिए जैसे लड़की का रिश्ता होना पूजा-पाठ आदि होना घर में नए मेहमान का आना बच्चे का जन्म होना शादी विवाह आदि कार्यों में भी गोबर से आंगन की लिपाई करती है । और आज भी बुक्सा  समाज की महिलाएं शिक्षित होकर नौकरियां कर रही हैं व्यापार कर रही हैं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं ।

जय हो राजा जगतदेव की। 





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