बुक्सा जनजाति की ढल्लैया पूजा की परम्परा

 


1.ढल्लैया पूजा 2.भौरो पूजा

1.ढल्लैया पूजा- ढल्लैया पूजा गांव की खुशहाली खेत,खलियान, फसल आदि को सुरक्षित रखने के लिए।की जाती है यह पूजा साल में एक बार

मां भगवती मां बालसुन्दरी देवी (थान मंदिर) में की जाती है।

इस पूजा की बुक्सा समाज मे सबसे बड़ी मान्यता है।इसलिए सच्चे दिल,सच्ची श्रद्धा सच्चे मन से माता रानी की पूजा करते हैं।इस पूजा का आयोजन हिंदी कैलेंडर के आषाण महीने में किया जाता है। और सोमवार के दिन को विशेष महत्व दिया जाता है यदि किसी कारणवश सोमवार के दिन यह पूजा नहीं हो पाती है तो फिर शुक्रवार के दिन इस पूजा को करते हैं।गांव के प्रत्येक घर से पुरुष महिला थान मंदिर में एक साथ पूजा करने जाते है। और प्रत्येक घर में घुमानी माता(घर की माता) की भी पूजा की जाती है । अपने अपने घर में बने हुए व्यंजन जैसे पूरी, हलुआ, खजरा,पुआ आदि को बनाकर ढल्लैया में रखकर ले जाती हैं। साथ में कुछ खील बताशे मिठाई भी पूजी जाती है।सबसे पहले गांव के पधान(मुखिया) इस पूजा की शुरुआत करता है फिर बारी बारी से गांव वाले पूजा करते हैं और यह पूजा शायं से पहले तक संपन्न करनी होती है घर की पूजा के बाद राह सिरानी (डोगर रास्ते ) की पूजा होती है जिसमें मिट्टी के आठ बर्तन बनाकर उसमें मसूर की दाल डालकर जल चढ़ाया जाता है।और शाम को सभी गांव वालों को प्रसाद वितरण क्या जाता है। उसके बाद पधान के घर रतजगा प्रोग्राम होता है जिसमें इच्छुक महिला भजन कीर्तन सुंदर सुंदर नृत्य के साथ माता रानी का गुणगान गाती है। फिर सुबह उन्हे चने का प्रसाद भोग के रूप में दिया जाता है। अगले दिन सुबह भूमसैन(नगराई)की पूजा की जाती है माता रानी का आशीर्वाद लेकर तिलक लगाया जाता है। इस तरह से यह पूजा संपन्न होती है। अर्थात ढल्लैया पूजा गांव की खुशहाली और फसल की सुरक्षा के लिए माता रानी से प्रार्थना की जाती है जिससे गांव में कोई संकट न आए।

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