दीवाली की परम्परा बुक्सा जनजाति
दीवाली के त्योहार को बुक्सा जनजाति समाज भी इस त्यौहार को बड़े धूमधाम से मनाता है और कुछ अनोखी और यादगार परंपरा इस समाज में हमेशा से चली आ रही हैं और चलती रहेंगी जैसे दीवाली की रात को सब लोग अपने घर में दीप जलाने के बाद छोटे-छोटे बच्चे बड़ी खुशी और हर्षोल्लास के साथ एक दूसरे के घर दीया रखने जाते हैं और बदले में कुछ पैसे और चावल दिए जाते हैं नेग के रूप में जो एक बहुत पुण्य माना जाता है पुरानी कहावत है यदि आपके घर में कोई बच्चा/बच्ची दिया रखने आए तो समझो आपके घर लक्ष्मी व कुवेर देवता चलकर आये है। और लक्ष्मी व कुवेर देवता को खाली हाथ वापस नहीं जाने देते इसलिए जिसके घर दिया रखने आते है तो वो उन्हें कुछ पैसे या चावल बदले मे देते है यह पल बच्चों के लिए बहुत ही खुशी भरा और यादगार होता है इस पल का लाभ हमने भी बचपन में बहुत लिया है।और आज बचपन की यादें ताजी हो गई ऐसी हमारी अनेकों परंपराएं है जो सदीयो से चली आ रही है और और हमेशा चलती रहेगी।
दीवाली बुक्सा समाज का प्रमुख त्यौहारो में से एक है इस त्यौहार में सर्वप्रथम घर की बिटिया या भांजी भांजे को दीवाली के त्योहार में लिवा के लाते हैं और त्योहार समाप्त होने के बाद उनके घर वाले वापिस लेकर जाते हैं और उन्हें विदाई में सगुन के रूप में पूरी व वस्त्र दान में दिया जाता है। दीवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा करते हैं और चावल के आटे के फरा बनाते हैं जिसे लोग बड़े चाव से खाते है। जय हो बुक्सा समाज की।
सम्पादक
जसवीर सिंह
मदपुरी गदरपुर उत्तराखंड