हल्दुखतनी माता का मंदिर
प्राचीन काल की बात है मां भगवती देवी की बरात आई थी मां डोली में बैठी थी इस स्थान हल्दुखाता में आते जाते लोग आंशिक विश्राम हेतू रुका करते थे। इसी बीच एक जादूगर ने उसको डोली से गायब कर दिया जब डोली में दुल्हन को ना देख सारे बराती घबरा गए उसके बाद जादूगर ने दुल्हन को एक सिंदूर की डिब्बी में बंद कर दिया समय बीतता गया और कुछ समय बाद उस जादूगर की मृत्यु हो गई मृत्यु के बाद सारा सामान उसके साथ विदा कर दिया कुछ दिन बाद जादूगर की बहू ने सारा घर साफ किया घर की साफ सफाई करते समय ताख में रखी सिंदूर की डिब्बी नीचे गिर गई और मां भगवती देवी आजाद हो गई आजाद होते ही हल्दुखाता गांव में कोहराम मचा दिया जैसे दो व्यक्ति का दाह संस्कार करके आ रहे लोग तो दो व्यक्ति की मृत्यु हो गई सभी गांव के लोगों में हाहाकार मच गया और कहने लगे कि ना जाने से गांव में किया बला आ गई।
मां भगवती दोपहर में छप्पर में चढ़कर तांडव नृत्य करने लगी छोटे बड़े जादूगरों ने उसे बस में करना चाहा लेकिन वह किसी के बस में नहीं आई आगे कथा का मोड़ यह है कि जहां आज मंदिर है उसके पास ही श्री गुटरू जी की 42 बीघा जमीन थी तथा वह खेती किया करता था उस समय श्री गुटरू जी के 16 हल चला करते थे तो इस खेत की सिंचाई नगर से की जाती थीं जो आज भी नहर मंदिर के पास से गुजरती है एक समय श्री गुटरू जी रात्रि में नहर पर पानी लेने के लिए गए तो मां भगवती रास्ते में विकराल रूप धारण किए खड़ी हुई थी श्री गुटरू जी यह दृश्य देखकर बहुत घबरा गए और सोचने लगा कि अब मैं कहां जाऊं पर गुटरू जी ने साहस जुटाया और बोला उस दिव्य शक्ति से कहने लगा कि अरे तुम कौन हो इस तरह क्यों रास्ता रोककर खड़ी हो हट जाओ और मुझे आगे जाने दो लेकिन वह नहीं हटी श्री गुटरू जी को आवाज दी हे मानव तू पहले मेरी बात सुन अगर मेरी बात नहीं सुनेगा तो मैं तुझे खा जाऊंगी श्री गुटरू जी ने साहस उठाकर कहा बोलिए तो माता रानी । माता रानी बोली मैं बहुत परेशान हूं तू मुझे कहीं कोई स्थान दे दे जिससे मैं एक ही जगह पर विराजमान हो सकूं श्री गुटरू जी समझ गए और मां भगवती से कहा कि आप तो दिव्य शक्ति हो मुझे सोचने के लिए थोड़ा समय दो मैं सोच समझकर आपको स्थान दे सकूं श्री गुटरू जी की जमीन गांव हल्दुखाता व पदमपुर, शिवराजपुर मोटाढाक में थी वह दोनों जगह के मूल निवासी थे श्री गुटरू जी ने सोचते-सोचते पुन: विचार बनाया इस पीपल के पेड़ के नीचे स्थान दे तू । जहां आज भी मां भगवती के रूप में विराजमान है श्री गुटरू ने कहा कि हे भगवती मां मैं आपको इस पीपल के पेड़ के नीचे स्थान देता हूं यह मेरा वचन है तब मां ने उसका रास्ता छोड़ दिया श्री गुटरू चल दिये और रात भर नींद ना आई सुबह उठ कर नहा धोकर अपने लड़कों से कहा बेटा पांच ईट साथ में ले लो पिता की बात मानकर पीपल के पेड़ के नीचे पहुंच गए श्री गुटरू जी ने अपने हाथों से इस स्थान पर पांच ईट लगाई और दीप व धूप जलाकर हाथ जोड़कर खड़े हो गए और प्रार्थना करके अपने वचन का पालन किया और कहा लो मां भगवती आज से यह स्थान आपका ही है तभी मां भगवती वहां प्रकट हो गई और अपने पूरे सिंगार में तथा थाल लेकर सामने खड़ी हो गई श्री गुटरू जी महाराज हाथ जोड़कर खड़े हो गए तभी मां ने कहा जो चाहे वरदान मांग लो श्री गुटरू ने कहा कि मां मुझे कुछ नहीं चाहिए बस इतना करना कि मेरे बच्चों तथा घर में गांव वाले सब राजी खुशी रहे तब मां ने कहा बस यही लेकिन कुछ और मांग ले पर श्री गुटरू जी ने मना कर दिया तब मां ने कहा आज से तू मेरा पण्डा होगा और सात पीढ़ी तक तेरे ही बच्चे बस मेरे पण्डा रहेंगे मैं सदा सभी के साथ रहुंगी तथा जो कुछ चढ़ावा होगा वो तुम्हें फलीभूत करता रहेगा तभी से बुक्सा जनजाति की कुलदेवी के नाम से प्राचीन मंदिर है साथ हीं ये परंपरा चली आ रही है कि स्वर्गीय श्री गुटरू जी की मृत्यु के बाद उनके पुत्र झुन्ना पंडा उसके बाद उनके पुत्र श्री मान सिंह पंडा अब वर्तमान में चरन सिंह पंडा पद पर आसीन हैं
जय हल्दुखतनी मैय्या की
मंदिर ग्राम-हल्दुखाता कोटद्वार, जिला पौड़ी गढ़वाल उत्तराखंड