बुक्सा पधान की कहानी

 

बुक्सा पधान की कहानी 

यह पधान क्या होता है। पहले पधान और प्रधान का अन्तर समझते हैं प्रधान जिसे सभापति भी कहते हैं जो पूरी ग्राम सभा का प्रधान(मुखिया) होता है जिसे जनता द्वारा 5 वर्ष के लिए चुना जाता है। एक होता है गांव का पधान (मुखिया) जो बुक्सा समाज के प्रत्येक गांव में अलग-अलग पधान होते हैं। जो कुल से ही जन्म जात से ही पधान होता है। जिसका अधिकार गांव खेड़े के देवी देवता की प्रथम पूजा करना और गांव सुरक्षा एकता, खुशहाली रखना गांव के आपसी विवादों को सुलझाना गांव के किसी भी आदमी को दोषी पाए जाने पर गांव से निष्कासित कर देना ये सब पधान के अधिकार होते हैं पधान की बात को कोई टाल नहीं सकता था।

बुक्सा समाज की विचारधारा राजपूतानी है प्राण जाए पर वचन ना जाए उसी के आधार पर चलती थी पधान गिरि

पधान के कार्य - 1.आवश्यकता पड़ने पर गांव में बैठक कर समस्या का समाधान करना 

2. गांव खेड़े के देवी देवता की पूजा (भंडारा,अठोरीवासना ढल्लैया पूजा ) में प्रथम पूजन पधान ही करता है उसके बाद गांव के लोग करते हैं। ये पूजा अपनी कुल देवी मां बालसुंदरी को मनाने के लिए की जाती है जिससे गांव मे खुशहाली रहे फसल अच्छी रहे कोई भी विपदा घर परिवार गांव में ना आएं सब खुश और सही सलामत रहे आदि के लिए की जाती है।

3. चैती मेला की बैठक कर चैती मेला जाने का दिन सुनिश्चित करना जिसमें किसकी जात लगेंगी, किस का मुंडन होगा और कौन बकरा का चढ़ावा देगा । पहले चैती मेला के पंडा बुक्सा समाज के पधानो को प्रसाद के रूप में एक बकरा देता था ।

4. किसी भी विवाद के दोनों पक्षों को सुनकर निर्णय देना और दोषी पाए जाने वाले व्यक्ति को सजा देना जिसकी बात सभी मानते थे और कोई भी पधान की बात को टालता नहीं था ।

5. होली को खिलवाना, अगर पधान होली खेलने से मना कर देता है तो फिर उस गांव में होली नहीं खेली जाती हैं।

पहले पधान का इतना डर होता था कि कोई भी व्यक्ति किसी भी गांव में ऐसे डायरेक्ट नहीं घुसता था सबसे पहले पधान से अनुमति लेता था तब जाकर गांव के अंदर प्रवेश करता था जहां तक की पुलिस दरोगा आदि क्यों ना हो क्योंकि पहले पधान की बहुत चलती थीं गांव के सारे छोटे बड़े फैसले पधान हीं निपटा देता था। पुलिस कोर्ट कचेरी तक बात ही नहीं पहुंचती थी।







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