बुक्सा समाज के कुछ गांवो मे डोगर पूजा होती है जिसमें प्रत्येक घर से एक एक महिला चैत और बैसाख के महीने में उज्जेर (चॉदनी रात) में पहले सोमवार को महीलाऐ व्रत रह कर दोपहर 12बजे तक अपने व्रत को तोड कर शाम को सभी महीलाऐ लोटा, बट्टा (कलश) में जल और कुछ अनाज लेकर थान (कुलदेवी) की परिक्रमा करके जल से माता अभिषेक करतीं है और दोवारा जल भरकर उस जल को घर ला कर घर के चारो तरफ पघ्घावर(परीक्रमा) करते हैं और जल डालते है और माता का तीलक सभी घर वालों को लगाया जाता है!
बुक्सा समाज के कुछ गांवो मे डोगर पूजा होती है जिसमें प्रत्येक घर से एक एक महिला चैत और बैसाख के महीने में उज्जेर (चॉदनी रात) में पहले सोमवार को महीलाऐ व्रत रह कर दोपहर 12बजे तक अपने व्रत को तोड कर शाम को सभी महीलाऐ लोटा, बट्टा (कलश) में जल और कुछ अनाज लेकर थान (कुलदेवी) की परिक्रमा करके जल से माता अभिषेक करतीं है और दोवारा जल भरकर उस जल को घर ला कर घर के चारो तरफ पघ्घावर(परीक्रमा) करते हैं और जल डालते है और माता का तीलक सभी घर वालों को लगाया जाता है!