मनीराम बाबा की कहानी
बुक्सा समाज के पूर्वज परम पूजनीय मनीराम बाबा का भव्य मंदिर भावर क्षेत्र दावका नदी के पुल के पास गांव-छोई तहसील-रामनगर, जिला- नैनीताल(उत्तराखंड) में स्थित है। इस मंदिर की भी एक अलग पहचान है लोग इसे धार्मिक स्थल के रूप में जानते हैं हजारों की तादाद में यहां पर लोग अपनी मन्नत मांगने व पूरी होने पर लोग मनीराम बाबा का प्रसाद चढ़ाने तथा दर्शन करने आते हैं।
बुक्सा समाज की आस्था के साथ साथ अन्य समाज के लोग भी मनीराम बाबा मे सच्ची आस्था व श्रद्धा रखते है।
आइए जाने मनीराम बाबा का इतिहास जितनी जानकारी मिली है आपके समक्ष रख रहा हूं।
मनीराम बाबा का नाम मनीराम सिंह था। इनका गोत्र बरुआ था। बरुआ परिवार के अनुसार प्राचीन काल में मनीराम बाबा को अल्मोड़ा के राजा ने, जो पूर्व सांसद केसी सिंह बाबा के दादा थे। उन्होंने मनीराम को तामपत्र के माध्यम से 10 गांव का मुखिया बनाकर सत्ता दे दी थी। 10 गांव के फैसले एक चबूतरे में बैठ कर क्या करते थे यदि कोई दोषी पाया जाता तो उसे बोरी में बंद करके लालढांग पहाड़ से गिरा देते थे। मनीराम मंदिर के सामने दावका नदी के पार जो लाल पहाड़ी दिखाई देती है उसी को लालढांग कहते है।
मनीराम बाबा दिव्य पुरूष थे।हमेशा लोगों की मदद करते थे और उनके पास अद्भुत चमत्कारी शक्ति भी थी। अपनी शक्तियों से किसी का भी रूप धारण कर लेते थे।
10 गांव के अलावा 100 घर मांझियों के भी थे। मांझियों के आंगन में सेमल के पेड़ मे भोर (मधुमक्खी)के छत्ते लगे हुए थे तो मनीराम ने कुछ बुक्सा भाइयों को उस छत्ते से शहद लाने के लिए कहा तो उन्होंने शहद निकालने से मना कर दिया। फिर मनीराम बाबा ने अपनी शक्ति से ही उस सेमल के पेड़ को अपने आंगन में खडा कर दिया।
एक बार एक औरत की नाक की नथ खो गई थी चार-पांच दिन ढूंढी लेकिन नथ कहीं नहीं मिली। फिर वह मनीराम बाबा के पास गई तो बाबा ने अपनी शक्ति से देखा और उसे कहा तुम्हारी नथ सेम के झापे में टंगी हुई है अर्थात सेम के पेड़ मे। औरत ने जाकर देखा तो उसी पेड़ में टंगी हुई मिली फिर वह मनीराम बाबा के पास आकर बोली हे बाबा इसके बदले मैं आपको क्या दूं मनीराम बाबा ने बोला मुझे खीर खिला दो इस तरह लोग मनीराम बाबा को प्रसाद के रूप में खीर खिलाने लगे । मनीराम बाबा के जीवित होते हुए भी लोग उनकी पूजा करने लगे। इस तरह से उनकी चमत्कारी शक्तियों का दूर-दूर तक प्रचार होने लगा फिर मनीराम बाबा समाधि पर बैठ गए और लोग अपनी मन्नतें मांगने लगे उनकी मन्नत पूरी होती रही और प्रसाद के रूप मे खीर चढ़ाते रहे।
एक बार एक बैलगाड़ी के पहिये की धूरी(एक्शल) टूट गया था तो उसने मनीराम बाबा का नाम लिया तो मनीराम बाबा ने अपना रूप बदला और पहिए का एक्सेल बनकर।गाड़ी वाले को गंगा की खादर लगभग गजरौला उत्तर प्रदेश तक पहुंचा कर मदद की। बैलगाड़ी वाला भी मनीराम बाबा की अद्भुत चमत्कारी शक्ति को मान गया।
इसी तरह से मनीराम बाबा ने अनेक चमत्कारी कार्य करके लोगों की मदद की है।
सिद्ध बाबा मनीराम बाबा के गुरु थे लेकिन मनीराम बाबा की महानता और चमत्कारी कार्य तथा लोगों की मदद करने के कारण मनीराम बाबा को सिद्ध बाबा से ऊपर का दर्जा लोगों ने दिया इसलिए मनीराम अपने गुरु सिद्ध बाबा से पहले पूजने लगे।
फिर प्रकृति ने ऐसी करवट बदली वहां के गांवों में महामारी(माता) नाम की बीमारी ने जन्म ले लिया जिससे पूरे गांव के गांव खत्म होने लगे और कुछ गांव दाबका नदी में अत्यधिक बाढ़ आने के कारण खत्म होने लगे कुछ बचे कुचे बुक्सा लोग यहां(छोई) से पलायन करके तराई में बाजपुर क्षेत्र में बस गए।
बदलते समय के अनुसार मनीराम बाबा में खीर चढ़ाने के साथ साथ लोग जीवो की बलि भी चढ़ाने लगे है।
आज भी वर्तमान काल में बुक्सा गोत्र बरूआ परिवार के कुलदेवता मनीराम बाबा को हर समाज के लोग सच्चे दिल से मानते है और सच्ची श्रद्धा के साथ पूजा अर्चना करते है।
बस इतना सा इतिहास हमें इनके वंशज बरूआ परिवार से मिला।(मनीराम बाबा के जन्म और मृत्यु तथा माता पिता कौन थे कुछ पता नही चल पाया है) आगे कुछ और इतिहास का पता चलेगा तो अगली पोस्ट में आपको बता दिया जाएगा
जब भी आप रामनगर घूमने आओ तो इस बुक्सा जनजाति के पूर्वज मनीराम बाबा का भव्य मंदिर में मत्था टेक कर जरूर जाए इसके बिना रामनगर की धार्मिक यात्रा अधूरी है।
इस मंदिर की देखभाल(मैनेजमेंट) बुक्सा समाज के लोग ही कर रहे है।
जय हो श्रद्धेय महाराज जगदेव परमार(पंवार) की
जय हो मां बाल सुंदरी देवी चैती मैया की
........👍 बुक्सा संस्कृति हमारी पहचान👌.......