राजा जगतदेव की शीश दान की कथा





राजा जगत देव सिंह पंवार की शीश दान की कहानी 

कहानी श्री जगत सिंह पंवार पुत्र अमर सिंह पंवार पुत्र कलीराम पंवार, अमरसिंह पंवार आयु 88 वर्ष जाति बुक्सा ग्राम चोहड़ खता तहसील नजीबाबाद जिला बिजनौर उत्तर प्रदेश

श्री अमर सिंह ने बताया कि मेरे पिताजी कलीराम बताया करते थे। राजस्थान के राजाओं की महफिल बैठती थी जिसमें नाच गाने का व बैठने का विशेष प्रबंध होता था हर राजा के बैठने का प्रबंध उसकी योग्यता के अनुसार होता था नाचने गाने का कार्य राजा इंद्र के अखाड़े की परियों के द्वारा किया जाता था कई वर्ष तक राजाओं की महफिल बैठती रही जिसमें राजा जगत देव सिंह पंवार को छोड़कर आसपास के सभी राजा भाग लेते थे उन राजाओं में करिया नाम के एक राजा भी थे उन्होंने कहा कि भाई इसमें आसपास के सभी राजा लोग आते हैं किंतु राजा जगत देव सिंह पंवार इस महफिल में आज तक नहीं आए फिर राजा जगतदेव को महफिल में आने के लिए निमंत्रण भेजा गया जिसे राजा जगत देव सिंह ने स्वीकार कर लिया एक राजा ने कहा कि राजा जगत देव सिंह पंवार वहीं स्थान पर बैठते हैं जहां पर उनका  भाला गढ़ जाए नहीं गढ़ा तो वह नहीं बैठेंगे राजा करिया ने उनके बैठने की जगह सुनिश्चित की एवं उस जगह पर लोहे के मोटे मोटे सात तवे एक साथ ऊपर नीचे कर भूमि में छिपाकर गाढ़ दिए गए ताकि भाला न गढ़े, निश्चित समय पर राजा जगतदेव घोड़े पर सवार होकर हाथ में भाला लेकर पहुंचे घोड़े से उतरते राजा करिया ने राजा जगतदेव सिंह को बैठने का इशारा किया राजा जगत देव घोड़े से उतरते ही अपना भाला उस जगह पर दे मारा जहां पर मोटे मोटे सात तवे दबे हुए थे भाला सातो तवे को भेदकर जमीन में गढ़ गया तब राजा जगतदेव अपने निश्चित स्थान पर बैठ गए।

इंद्र के अखाड़े की परी सज धज कर नौ जोत की थाल लेकर महफिल में पहुंच गई और अपने चेहरे को घूंघट से ढक कर नृत्य आरंभ कर दिया ये देखकर सभी राजा लोग अचंभित हुए हर बार खुला मूंह नृत्य करती थी आज क्या बात है जो परी घूंघट में नृत्य कर रही है इस पर परी ने जवाब दिया आज राजाओं की महफिल में एक सूरवीर राजपूत राजा बैठा है इसलिए मैं आज अपना मुंह नहीं दिखाऊंगी परी ने अपने नृत्य से सभी राजाओं को मंत्र मुग्ध कर दिया राजाओं ने नृत्य से खुश होकर इनाम देने की पेशकश की परी ने कहा कि आज मुझे अपना वो ईनाम चाहिए जो आज तक किसी राजा ने नहीं दिया है आज राजा जगत देव मुझे जो इनाम देंगे वहीं ईनाम सभी राजाओं को देना होगा राजाओं ने सोचा कि राजा जगत देव एक छोटी सी रियासत के राजा है ये इस परी को क्या इनाम दें सकता है। हम तो बड़ी-बड़ी रियासतों के राजा है हमारे पास तो हीरे जवाहरात मोती स्वर्ण मुद्रा आदि भारी मात्रा में देने के लिए पर्याप्त है परी नृत्य करती हुई सभी राजाओं की ओर मुखातिब हुई और राजा जगतदेव की ओर भी मुखातिब हुई और बोली मुझे आपसे उस ईनाम की दरकार है जो आज तक किसी ने नहीं दिया । इतना सुनते ही राजा जगत देव ने अपना सिर परी के हाथ में लिए थाली की और झुकाया और तुरंत अपनी तलवार से अपना सिर काटकर थाल में रख दिया यह दृष्टांत देखकर करिया सहित सभी राजा भाग गए तब उस परी ने मां बाल सुंदरी का रूप धारण कर कटे हुए सिर को धड़ पर रखकर उसे जीवित करने का प्रयास किया जिसे राजा जगत देव ने स्वीकार करते हुए कहा कि मेरा शीश आपकी भेंट चढ़ चुका है यह जूठा हो गया है यदि आप मुझे जिंदा करना चाहती हो तो गोबर से मेरे सिर का आकार बनाकर उसे मेरे धड़ पर रख कर जीवित करें माता बाल सुंदरी ने ऐसा ही किया गोबर का शीश बनाकर राजा जगत देव सिंह के धड़ पर रखकर उसे जीवित कर दिया । राजा जगत देव सिंह जब घोड़े पर सवार होकर जाने लगे तो माता बाल सुंदरी ने उन्हें पकड़ लिया और कहा कि अब अकेले कहां जाओगे अब मैं भी आपके साथ ही रहूंगी हम उसी राजा जगदेव सिंह के वंशज हैं तब से माता बाल सुंदरी जी राजा जगत देव के साथ आई। जब जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था तो उस समय राजा जगत देव सिंह अपनी फौज व रानियों, बाल बच्चों बुजुर्गो के साथ पहाड़ों व जंगल में छिपने के लिए हिमाचल होते हुए उत्तर प्रदेश के तराई भावर क्षेत्र में आए राजा के भाई व परिवार के लोग मुगलों के साथ लड़ाई में मारे जा चुके थे राजा जगत देव के साथ फौज में जो लोग आए थे वे कई गोत्र के लोग थे उन्हें जगह-जगह बसा दिया हमारे पूर्वजों ने कण्वा ऋषि आश्रम कलाल घाटी से पूर्व की ओर लगभग 5 मील की दूरी पर शक्ति चोर मावाकोट की पहाड़ियों में राजा जगत देव सिंह एवं माता बाल सुंदरी के मंदिर की स्थापना की मंदिर के साथ फौज के साथ सिपाहियों की आक्रमण आकृतियों की भी स्थापना की गई मंदिर के अंदर जो मूर्ति स्थापित है वह हाथ में थाल थाल में रखा कटा शीश की मूर्ति है जो इस बात का प्रमाण है इस मंदिर में एक पुजारी को रखा गया था जो कहीं से चंदन के पौधे लाया और मंदिर के आस पास रोपे गए लोगों ने बाहर लगी सेना की मूर्तियों को चुरा लिया चंदन के बड़े दरख्तों को चोरी से काट लिया गया है उन दरख्तों के मूल एवं उन मूलो से उपजे नए पेड़ इस स्थान पर आज भी देखे जा सकते हैं इस मंदिर के पास काफी भूमि है जिसे मंदिर के सौंदर्यीकरण करने हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है इस मंदिर का जीर्णोद्धार कर सरकार का एक आमदनी का जरिया भी बन सकता है इस मंदिर पर आज भी श्री अमर सिंह के द्वारा चैत नवरात्रे में राजा जगत देव सिंह एवं माता बाला सुंदरी की पूजा अर्चना की जाती है और आसपास की हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा-अर्चना हेतु इस मंदिर में पहुंचते है ।

श्री अमर सिंह का कहना है कि शक्ति चोर मावाकोट में हमारे वंशजों की लगभग 300 एकड़ भूमि थी उस भूमि का हम काश्तकारों से कण लिया करते थे एक बार इलाके में हैजे की बीमारी फैल गई उस बीमारी में हमारे वंशज जी चपेट में आ गए तब उस भूमि को हमें छोड़ना पड़ा और चोहड़ खता के घोर जंगल में जाकर बसे मावाकोट में आज भी हमारे पूर्वजों के बनाए गए मकान विद्यमान हैं ।

श्री अमर सिंह ने बताया कि चोहड़ खता में मैंने लगभग 300 बीघा भूमि पर कब्जा कर लिया और अपने कारोबार को बढ़ाया ये देखकर स्थानीय डाकू व बदमाश लोगों ने मेरे घर पर तीन बार डकैती डाली सब कुछ लूट लिया गया एक बार मैंने दो डकैतों पर अपनी लाइसेंसी बंदूक से गोली चलाई दोनों डकैत घायल होकर भाग गए

एक बार रात को पुलिस वाले गांव में गश्त के लिए रात्रि में आए क्योंकि मैं कई बार डकैतों का सामना कर चुका था डकैत समझ कर मैंने पुलिस वालों के ऊपर गोली चला दी गोली पुलिस वालों के कान तोड़ कर चली गई मैं व मेरा परिवार पकड़ा गया हमारे लोगों ने देहरादून से आकर हमारी मदद की संघर्ष कर हमें जेल से छुड़ाया इस बात के लिए हम अपनी जाति के लोगों का विशेषकर श्री मंगत सिंह खैरी खुर्द देहरादून का लोहा मानते हैं।

धन्यवाद।

Buksa Parivar

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