कुलदेवी मां बाल सुंदरी देवी व सिहारी वाले गौत्र की कहानी



बुक्सा समाज की कुलदेवी मां बाल सुंदरी देवी व सियारी वाले गोत्र की कहानी 

बुक्सा समाज में एक प्राचीन कहानी काफी प्रचलित है जिसके साक्ष्य बुक्सा समाज के प्रत्येक बुजुर्ग है काफी बुजुर्गों से चर्चा करने के बाद हम मिले गोत्र सियारी वालों से और गांव सिंहाली के बुजुर्गों से उनके अनुसार जब बुक्सा समाज की बस्तियां पीपली स्टेट जनपद रामपुर उत्तर प्रदेश में बसी थी उस समय मुस्लिम शासन काल था ये कहानी उस समय की है जब मां बाल सुंदरी देवी की स्वर्ण प्रतिमा बुक्सा समाज के सियारी वाले गौत्र के लोगों के पास थी और बुक्सा समाज के लोग जादू टोना में निपुण थे अपनी आत्मरक्षा के लिए तंत्र विद्या का प्रयोग किया करते थे। और एक जगह से दूसरी जगह पलायन करते रहते थे एक दिन बुक्सा समाज के लोगों का एक बड़ा सा दल मां बाल सुंदरी देवी को डोली में बैठाकर जंगलों में भ्रमण के लिए निकला तो भ्रमण करते करते माता रानी को पीपली स्टेट की जगह पसंद आ गयी उन्होंने अपने भक्तों से कहा आप मेरी मूर्ति की स्थापना यही करें पीपल के पेड़ के नीचे कुछ समय के लिए मैं यहां रहना चाहती हूं तो ठीक माता का आदेश मानकर बुक्सा समाज के लोगों ने पीपल के पेड़ के नीचे माता की डोली रखकर मूर्ति की स्वर्ण प्रतिमा को रखा और सभी लोग पूजा अर्चना करने लगे और वहीं पर अपनी बस्तियां वसा ली । मां बाल सुंदरी का एक मुख्य बुक्सा पुराजी था जिसकी गोत्र सिहारी वाले थी जिससे मां बाल सुंदरी देवी अत्यंत प्रसन्न रहती थी ‌पुजारी के दो भाई भी थे जो पीपली जंगल स्टेट में जाकर नहीं बसे थे वह यही गांव  सिहाली बाजपुर में ही अपना जीवन यापन करते थे। जब घर में गृह क्लेश पारिवारिक झगड़ा बढ़ने लगा तो जो मुख्य पुजारी थे उन्होंने माता रानी को हाथ जोड़कर मन ही मन में कहां हे माता रानी मेरे घर परिवार में बहुत पारिवारिक क्लेश बड़ चुका है मुझ को लेकर । इसलिए मैं अब आप की सेवा यहां रहकर नहीं कर पाऊंगा घर से ही हाथ जोड़ कर आपकी भक्ति करूंगा और मैं पीपली स्टेट छोड़कर अपने गांव जा रहा हूं। जब पुजारी अपने गांव सिहाली आ गया तो उसके कुछ समय बाद पीपली स्टेट पर मुस्लिम शासकों ने हमला कर दिया और वहां पर मंदिर के सामने गौ वध कर दिया। जिससे माता रानी काफी क्रोधित हुई उनकी आंखों में क्रोध की ज्वाला धधक रही थी और उसी स्थान को ध्वस्त/विरान कर मंदिर के शिखर/गूम्बद को तोडकर पीपली वन को छोड़कर पुनः माता रानी गांव सिंहाली में आकर पुराजी के घर में साक्षात्कार प्रकट हुई और माता रानी के आंखों में क्रोध की ज्वाला धधक रही थी। यह सब देखकर पुजारी ने कहा माता रानी आप की आंखों में क्रोध की ज्वाला कैसे शांत हो जाए माताजी फिर माता रानी ने अपनी आपबीती बताई और कहा अब मैं आपके साथ यही रहूंगी आप ही मेरे सच्चे भक्त हों तत्पश्चात गांव में ही पुजारी ने एक मंदिर की स्थापना की और वहां पर चैती मेला लगने लगा दूर-दूर से यहां पर व्यापारी अपना व्यापार करने आते थे और सभी भक्त गण माता रानी के दर्शन करते थे। ऐसे ही पूजा-अर्चना चलती रही और हर साल माता रानी का मेला लगता रहा।उसके बाद पुजारी और उनके भाइयों में पारिवारिक विवाद बढ़ता रहा पुजारी के जो भाई थे वह कहते थे तुम पूरी जिंदगी पूजा पाठ सेवा ही करते रहोगे अपने बाल बच्चों को भी देखो कुछ कामकाज भी कर लिया करो हमारे बस की नहीं है जो आपके बाल बच्चे को पाले फिर पुजारी ने घर की परेशानी को देखकर मजबूरी में आकर पुजारी व बुक्सा समाज के लोगों ने तामपत्र द्वारा अग्निहोत्री परिवार को कुल पुरोहित मानकर मां बाल सुंदरी देवी की स्वर्ण प्रतिमा भेंट स्वरूप दी उसके कुछ दिन बाद फिर अग्निहोत्री परिवार को छोड़कर माता रानी पुन: उस पुजारी के पास आ गई और कहने लगी आप ही मेरी सेवा करो मैं वहां पर नहीं रहूंगी फिर पुजारी ने माता रानी को अपनी कसम देकर वही वापस जाने को कहा और कहा मैं भी आकर पुजारी के रूप में आपकी सेवा करता रहूंगा । तत्पश्चात माता बाल सुंदरी अग्निहोत्री परिवार में ठहरी। तामपत्र किसी कारणवश बुक्सा समाज के लोग संभाल नहीं पाए या नष्ट हो गया इस कारण केवल अब किंवदंतियां ही रह गई है । उसके बाद काशीपुर चैती परिसर में मां बाल सुंदरी देवी के मंदिर की स्थापना मुगल शासन काल में हुई। कुछ लोगों का ऐसा कहना भी है औरंगजेब की बहन बहुत बीमार थी तो माता रानी ने उनके सपने में आकर कहा आप मेरा मंदिर यहां बनाओगे तो आपकी बहन सही हो जाएगी तत्पश्चात औरंगजेब ने मां बाल सुंदरी का मंदिर बनवाना प्रारंभ किया उसके बाद औरंगजेब की बहन ठीक हो गई। माता रानी हमेशा बुक्सा समाज के साथ डोली में बैठकर गाजे बाजे ढोल नगाड़ों के साथ भ्रमण के लिए जाती थी यही कारण है दोस्तों आज भी चैती मेला में माता रानी डोली में बैठकर ढोल नगाड़ों के साथ आती हैं। आज भी गांव सिंहाली में जहां चैती मेला लगता था वहां पर पुराने अवशेष मिल जाते हैं कालांतर में जब सरकार द्वारा रोड बनाई जा रही थी तो चांदी के सिक्के,घड़े, मटके,चक्की, सिल बटना,बैल घोड़े ऊंट के खुरपे आदि अन्य अवशेष मिले। ऐसा कहना है गांव सिंहाली वालों का और बुक्साड़ के बुजुर्गो का । हालांकि इस कहानी में कितनी सच्चाई है यह हमे नहीं पता लेकिन यह कहानी सदियों से चली आ रही है और आज भी प्रचलित है । जो मां बाल सुंदरी देवी चैती मंदिर काशीपुर के मुख्य पंडा विकास अग्निहोत्री भी मानते हैं कि मां बाल सुंदरी देवी बुक्सा समाज की कुल देवी है। बुक्सा समाज ने हीं उनके पूर्वजों को कुल पुरोहित मानकर सौंपी थी। यही सच्ची कहानी है हालांकि इस कहानी का कोई सबूत नहीं है इसलिए किसी भी इतिहासकारों ने यहां आकर जानने की कोशिश नहीं की और ना ही इस कहानी को किसी भी इतिहासकारों ने लिखा लेकिन दोस्तों कुछ कहानी ऐसी होती हैं जो सच होती हैं लेकिन इतिहास के पन्नों में नहीं लिखी जाती हैं उन्हीं में से एक यही है सच्ची कहानी मां बाल सुंदरी देवी माता की जो बुक्सा समाज की कुलदेवी है। 

दोस्तों आज भी गांव सिंहाली, नगदपुरी,टंकपुरी,बबनपुरी,थोनपुरी,मलपुरी, बेरिया नवीन, कंदला,चन्दायन आदि गांवों में सियारी वाले गोत्र के परिवार रहते हैं जो पुजारी के वंशज हैं। जिनके पास मां बाल सुंदरी देवी की स्वर्ण प्रतिभा रहती थी आप वहां जाकर पूछ सकते हैं और बुक्सा समाज के बुजुर्गो व बुद्धिजीवी लोगों समाजिक संगठन समितियों से इस विषय में जानकारी ले सकते हैं।

गौत्र सिहारी वाले श्री बाबू सिंह तोमर (अध्यक्ष बुक्सा जनजाति कल्याण समिति ) के अनुसार रामपुर पीपली स्टेट मे बहुत सारे बुक्सा गांव थे। जिसमे एक गांव में बाबू सिंह तोमर के पिता श्री स्व.लाल सिंह का जन्म वहीं हुआ था लालसिंह पुत्र स्व.अमर सिंह पुत्र स्व. बल्लभ सिंह पुत्र स्व.जोरा सिंह आदि उसी गांव में रहते थे। उस गांव का नाम रिक्षा था जो वर्तमान में केशवगढ़ के नाम से जाना जाता है। आज भी पीपली वन में लगभग 1200 जीवंत और मृत अवस्था में कुंआ भवनों के अवशेष मिलते है।

 लेखक अमरसिंह बुक्सा परिवार 

कहानी -सदियों से बुक्साड़ में प्रचलित है बुजुर्गो व सियारी गोत्र वाले , सिंहाली गांव रूपसिंह  मंगू सिंह गांव थोनपुरी काशीपुर दिनेश कुमार पिता श्री सरोवन सिंह पिता श्री स्वर्गीय बाबू राम पिता श्री स्वर्गीय तान सिंह

जय मां बाल सुंदरी देवी चैती मैय्या की।

जय हो श्रद्धेय राजा जगतदेव की

Buksa Parivar

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